..बेटी तो हर पल ,बेटे का फर्ज निभाती है ,
पर बेटे के बेटी बनने में ,पूरी उम्र गुजर जाती है ।
फिर भी ....
अरे बधिक,दर्पदमित तू फिर भी ,काल उसका हो जाता है,
बाल शोणित पिपासा में, माँ की कोख़ को तू लजाता है ।
स्वाध्याय न आता तुझको,जीवन से तू हारा है,
बन साहसी स्वीकार कर ले तू,निर्लज्जता का तारा है ।
एक बाला को पाल् न सकता,निंद्य अंध अभिमानी तू,
क्षद्म पौरुष की छाया में,कर्तव्य से बचता गुमानी तू ।
वधु की है अभिलाषा तुझको,बेटी न तुझको भायी है,
रे बर्बर,बतला दे मुझको, वधु कहाँ से आयी है ।
शिखंडी पाखंडी है तू,जड़मति शून्य गवारा है,
बेटियो का हंता बनके, नरक को तूने पुकारा है ।
पीढ़िया दर पीढ़ी मिटती, सुख न रहता लेश ,
सुखसुधा से वंचित रहता,हर दम रहता क्लेश ।
धिक्कार तुझे,धिक्कार तुझे,धिक्कार है दानवजन,
इस धरा का बोझ है तू,प्यारे वैशाखनंदन ।
सावधान हो जाओ तुम भी,करो न यूँ पागलपन ,
बेटी तो जीवन दाता है,दिखला दो तुम अपनापन ।
-------- योगेश्वर
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