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बाबूजी,आप ही बताओ

बाबूजी,आप ही बताओ,
दो बच्चो का ये अधपकी आयु वाला धवलवर्णी केश सँजोये बाप, विपदा की महादशा में आज भी आपकी छाया के आश्रय तले ही सुकून क्यो पता है ? आज भी जब तनाव ,चिंता,अवसाद की उत्तुंग तरंगे मुझे अपने आग़ोश में लेने के लिये पूर्ण संवेग से झपटती है तो पत्नी,बच्चो की मोटरबोट,दोस्तो के स्टीमर को छोड़ आपकी छोटी सी कश्ती में बैठ कर ही पार होने के प्रति मन इतना आश्वस्त क्यो रहता है ? ये केवल क्रोमोजोम का लोचा तो नही लगता ? मुझे तो ये आपके अवर्णनीय , अकथनीय प्रेम की चुम्बकीय शक्ति का एक अंश मात्र जान पड़ता है ।
आज भी जब आपकी आवाज सुनता हूँ ..."कैसे हो बेटा "," ओर क्या एसपी साहब ", " चिंता मत करो पंडित " , तो सकारात्मक ऊर्जा का ओरा बन जाता हैं । चिंता चुटकियों में वाष्पीकृत हो जाती है क्योकि मै जानता हूँ आपने जब एक बार कोई समस्या को जान लिया तो आप ईश वंदना से विपत्तिनाश बीजक लेकर ही मानेंगे।
कार्य कर ऊर्जित होने की कला,मन के विपरित विचारो को भी सम्मान देने के आपके तरीके,विवाद का मौन रह कर प्रतिकार करने की आपकी सिध्दि को आज तक आत्मसात करने की चेष्ठा कर रहा हूँ । आपके द्वारा बोले गये शब्दो "not failure but low aim is guilty " ने जीवन मे क्रांतिकारी परिवर्तन किया है ।
आप आज भी एक अच्छे पिता की भूमिका में है और मैं अच्छा बेटा औऱ पिता बनने के लिए संघर्ष कर रहा हूँ।
मुझे आपकी,अपनी उम्र और अपने ओहदे से कोई सारोकार नही ,मैं हमेशा आपका नन्हा,उंगली पकड़ कर चलने वाला बेटा बना रहना चाहता हूं,वो भी सदा के लिये ।
सादर वंदन,दंडवत नमन ।

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