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अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूं तो इंक़लाब लिखा जाता है - भगत सिंह

जिनके बल पर हिमालय का शीश गर्वोंमत्त रहता है,जिनकी भुजाओ की ताकत से झेलम उफ़ान मारती है । सोमनाथ के सागर का रौद्र रूप जिनके साहस का प्रतिमान है, ऐसे होते है कुछ विरले ।

ये लोग बड़े अलहदा होते है,विलक्षण,विचित्र,अलग ही प्रतिभा लिए , यूँ कहे कुछ अलग ही मिट्टी के बने होते है । अलग ही तरीके का जीवन जीते है, भस्म कर देने वाली रेत में भी मुस्कराते है तो हाड़ गला देने वाली बर्फ़ खुद पिघल कर जहाँ पानी बन जाती है ये फ़ौलादी वहाँ भी जमे रहते है । ग़लनांक एवं क़्वाथनांक की परिभाषा से परे होते है ये लोग । आख़िर कौन है ये औऱ क्या पहचान है इनकी । ये माटी के लाल होते है , माटी ओढ़ते है ,माटी पहनते है औऱ माटी के लिए मर मिटने को हरदम तत्पर रहते है । माटी के लिये शीश बलि को अपनी आन बान शान समझते है औऱ उसके लिए होड़ लगाते है । किसी यश की चाह नही होती है इनको । इनका धर्म, जाति,भाषा सबकुछ माटी होता है फिर चिंदीचोरो की तरह इनके पास लड़ने, आगज़नी करने ,तोड़फोड़ करने का समय कहाँ ?? इनको अपनी अपनी निष्ठा प्रमाणित करने के लिए किसी के सर्टिफ़िकेट की आवश्यकता नही होती वरन वे स्वयं प्रमाण होते है देश के प्रति निष्ठा का। ये अदम्य साहसी निष्ठावान लोग ही देशरक्त औऱ देशभक्त कहलाते है । जब ये वर्दी पहन लेते है तो फ़ौजी कहलाते है और बिना वर्दी में देशभक्त नागरिक के रूप में अँधेरे में माटी के लिए अपना फ़र्ज़ पूरा करते हुए मिट्टी हो जाते है ।
कभी ये गुरुबचन सिंह सलारिया,अर्जुन नय्यर, नीलकंठ जयचंद्र नायर,विक्रम बत्रा,अर्जुन कुमार वैद्य , विकास गुरुंग आदि आदि होते है । तो कभी 'राजी' की 'सहमत 'बन कर देश के लिये पारिवारिक रिश्तों को भी होम करने में गुरेज़ नही करते । आख़िर क्यो औऱ कैसे करते है ये लोग । कहाँ न.... ये माटी के लाल होते है , माटी ओढ़ते है ,माटी पहनते है ,माटी के लिए ही सोचते है औऱ माटी के लिए मर मिटने को हरदम तत्पर रहते है ।
तभी तो कहते है कोई ऐसे ही फौजी नही हो जाता है और कोई ऐसा वैसा भी फौजी नही हो जाता है । स्वशीश समर्पण की अदम्य भावना रखने वाले ही सीमाओं की शान होते है ।
जयहिंद ।
इस कदर वाकिफ़ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से,
अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूं तो इंक़लाब लिखा जाता है'.
........... भगत सिंह

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