अभी करवाचौथ की पूजा के बाद हम उज्जैनगामी होने के लिए ट्रेन में सवार होकर बैठे ही थे कि व्हाट्सएप पर श्रीमती रिंकू शर्मा जी का एक मर्मस्पर्शी काव्यात्मक संदेश मिला ।
आप भी देखिये....
आप भी देखिये....
आधी-आधी राहें अपनी,
पूरी मंजिल पाना है।
आधी दूरी तय की हमनें,
आधा उन्हें ही आना है।
पूरी मंजिल पाना है।
आधी दूरी तय की हमनें,
आधा उन्हें ही आना है।
आधी रातें,आधी बातें,
आधे सब अफ़साने है।
अपनी बातें बोल चुके हम,
आधी उन्हें बताना है।
आधे सब अफ़साने है।
अपनी बातें बोल चुके हम,
आधी उन्हें बताना है।
आधे-आधे ख्वाब जोड़कर,
पूरा उन्हें सँजोना है।
आधे ख़ुद ही मान गए हम,
आधा उन्हें मनाना है।
पूरा उन्हें सँजोना है।
आधे ख़ुद ही मान गए हम,
आधा उन्हें मनाना है।
वहीं कहीं चुपके से आकर,
साथ में उनकी खुशबू लाकर।
आधे चाँद की आधी किरणें,
आधे बिस्तर पसर गई हैं।
इंतज़ार है उन किरणों का ,
जाकर दूर जो छिटक गई ।
लेकर आधी उन किरणों को
उन्हें हमे मानना है
आधी दूर पहुँच गए वो,
आधा और भी आना है।
साथ में उनकी खुशबू लाकर।
आधे चाँद की आधी किरणें,
आधे बिस्तर पसर गई हैं।
इंतज़ार है उन किरणों का ,
जाकर दूर जो छिटक गई ।
लेकर आधी उन किरणों को
उन्हें हमे मानना है
आधी दूर पहुँच गए वो,
आधा और भी आना है।
आधी आंखें मुदीं हुई है,
आधी अब भी खुली हुई हैं।
खुली हुई उन आँखों से,
इंद्रधनुष बनाना है ।
आधी दूरी तय की हमनें,
आधा उन्हें ही आना है।
.........
संदेश में समाहित संदेश समझा तो प्रतिउत्तर देने के लिए लंबे अरसे बाद पुनः कलम से साक्षात्कार हुआ औऱ एक लघु कविता संदेश के रूप में रिंकुजी भेजी गई ----
आधी अब भी खुली हुई हैं।
खुली हुई उन आँखों से,
इंद्रधनुष बनाना है ।
आधी दूरी तय की हमनें,
आधा उन्हें ही आना है।
.........
संदेश में समाहित संदेश समझा तो प्रतिउत्तर देने के लिए लंबे अरसे बाद पुनः कलम से साक्षात्कार हुआ औऱ एक लघु कविता संदेश के रूप में रिंकुजी भेजी गई ----
तुम बिन टूटे सपने अपने ,
तुम बिन सूनी राहे है ।
तुम बिन रीता रीता सा मन,
तुम बिन आधी बाहे है ।
तुम बिन सूनी राहे है ।
तुम बिन रीता रीता सा मन,
तुम बिन आधी बाहे है ।
तुम बिन रातें काली सारी,
तुम बिन चहुँ अंधियारा है ।
तुम बिन दिन की तपती धुंपे ,
तुम बिन दिल बेचारा है ।
तुम बिन चहुँ अंधियारा है ।
तुम बिन दिन की तपती धुंपे ,
तुम बिन दिल बेचारा है ।
तुम बिन सूने झूले अपने ,
तुम बिन बगियाँ सूखी है ।
तुम बिन कोयल की भी कूके,
लगती रुख़ी रुख़ी है ।
तुम बिन बगियाँ सूखी है ।
तुम बिन कोयल की भी कूके,
लगती रुख़ी रुख़ी है ।
तुम्हारी वाणी की वीणा में,
अपना स्वर भी पाते है ।
तुमको नित् सुनको को ही,
प्राण मौन रह जाते है ।
शतदल की भीनी सुवास में,
एहसास तुम्हारा ही पाते है ।
भ्रमर के मीठे गुँजन भी ,
गीत तुम्हारे ही गाते है ।
शीतल चंद्र की चंचल किरणे,
हौले से यू कह जाती ,
आज सज़ा लो सेज़ नैनो की,
सपनो की देवी आती ।
अपने सपने,अपनी मंज़िल,
संब कुछ तुम पर अर्पित है ।
जीवन साध्य हो तुम हमारा,
सब कुछ तुम पर समर्पित है ।
सोच समझ कर देख लिया ,
अब विलग तुम्हे नही पाते है ।
जीवन सरिता का तुम साग़र हो,
नीर नीर हो जाते है ।
अपना स्वर भी पाते है ।
तुमको नित् सुनको को ही,
प्राण मौन रह जाते है ।
शतदल की भीनी सुवास में,
एहसास तुम्हारा ही पाते है ।
भ्रमर के मीठे गुँजन भी ,
गीत तुम्हारे ही गाते है ।
शीतल चंद्र की चंचल किरणे,
हौले से यू कह जाती ,
आज सज़ा लो सेज़ नैनो की,
सपनो की देवी आती ।
अपने सपने,अपनी मंज़िल,
संब कुछ तुम पर अर्पित है ।
जीवन साध्य हो तुम हमारा,
सब कुछ तुम पर समर्पित है ।
सोच समझ कर देख लिया ,
अब विलग तुम्हे नही पाते है ।
जीवन सरिता का तुम साग़र हो,
नीर नीर हो जाते है ।
फिर क्यों हो माँग आधे की,
जब जीवन तुम पर वारा है,
हम तो कब का मान चुके है,
जीवन तुमने सँवारा है।
---योगेश्वर
जब जीवन तुम पर वारा है,
हम तो कब का मान चुके है,
जीवन तुमने सँवारा है।
---योगेश्वर
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