इस कायराना हरकत को अंजाम देने वाले नापाक 'पाक' को खुला चैलेंज ---
वीर सैनिको की हत्या कर ,मूषक (चूहा)तू हमे ललकार रहा,
अरे वज्र मूढ़ अनजाने में तू ,अपना काल पुकार रहा ।
रुंड मुंड मय मेदिनी कर दे,नभ को अराति शीशो(दुश्मन सिरो) से पुर दे,
दनुज दमन (राक्षसों का नाश) औऱ दर्प हरण कर (घमंड चूर कर)अरि चक्षु (शत्रु के नेत्रों)को शूलों से भर दे ।
ऐसी प्रतापी नरसिंहो की धरा को ,तू धूर्त दुत्कार रहा,
अरे लम्पट,जाने अनजाने में तू, अपनी कब्र सँवार रहा ।
तेरी गीदड़ घुड़कियों से ,भयभीत धरा ये नही होगी,
अलबत्ता इसके पौरुष से ,तेरी मिट्टी पलित होगी ।
शीश पर शीश चढ़ा देंगे पर ,एक इंच भी धरा न देंगे ,
मांद में घुसकर तेरी ग्रीवा (गर्दन)को मिट्टी में मिला देंगे ।
अरे निरीह छोटे तारे तू ,भास्कर (सूर्य)को ललकार रहा,
अरे अशिष्ट जाने अनजाने तू अपना काल पुकार रहा ।
जब गरजेगी रण में तोपे, तेरा मान मर्दन होगा,
तेरे घर के कण कण में ,दारुन कातर क्रंदन (रोना)होगा ।
गर्दभ के कंधे चढ़ तू सिंहराज को ललकार रहा,
अरे प्रवंचक,जाने अनजाने तू अपना काल पुकार रहा ।
रणभूमि के मंचपटल पर मस्कारो(जोकर,बड़बोले) का काम नही,
जिन अहि पुत्रो (आतंकवादी रूपी साँप के बच्चे)को दूध पिला रहा तू ,उनका कोई अभिमान नही ।
यह तो उन वीरो की भूमि जो जान हथेली रखते है ।
एक हस्त यदि झूल गया(,टूट गया) तो दूसरे हस्त से लड़ते है ।
तेरे घर मे रह कर जो (आतंकवादी)तुमको आँख दिखाते है ।
अरे अमित्र,ऐसे सरीसृपों के विषअग्नि से खुद के घर जल जाते है ।
ऐसे सपोलों के बल पर तू ,पक्षी राज(गरुड़) को ललकार रहा,
अरे दनुज,जाने अनजाने तू अपना काल पुकार रहा ।
जय हिन्द,जय भारत,भारतमाता की जय ।
विनम्र श्रद्धांजलि
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