..बेटी तो हर पल ,बेटे का फर्ज निभाती है , पर बेटे के बेटी बनने में ,पूरी उम्र गुजर जाती है । फिर भी .... अरे बधिक,दर्पदमित तू फिर भी ,काल उसका हो जाता है, बाल शोणित पिपासा में, माँ की कोख़ को तू लजाता है । स्वाध्याय न आता तुझको,जीवन से तू हारा है, बन साहसी स्वीकार कर ले तू,निर्लज्जता का तारा है । एक बाला को पाल् न सकता,निंद्य अंध अभिमानी तू, क्षद्म पौरुष की छाया में,कर्तव्य से बचता गुमानी तू । वधु की है अभिलाषा तुझको,बेटी न तुझको भायी है, रे बर्बर,बतला दे मुझको, वधु कहाँ से आयी है । शिखंडी पाखंडी है तू,जड़मति शून्य गवारा है, बेटियो का हंता बनके, नरक को तूने पुकारा है । पीढ़िया दर पीढ़ी मिटती, सुख न रहता लेश , सुखसुधा से वंचित रहता,हर दम रहता क्लेश । धिक्कार तुझे,धिक्कार तुझे,धिक्कार है दानवजन, इस धरा का बोझ है तू,प्यारे वैशाखनंदन । सावधान हो जाओ तुम भी,करो न यूँ पागलपन , बेटी तो जीवन दाता है,दिखला दो तुम अपनापन । -------- योगेश्वर
इस कायराना हरकत को अंजाम देने वाले नापाक 'पाक' को खुला चैलेंज --- वीर सैनिको की हत्या कर ,मूषक (चूहा)तू हमे ललकार रहा, अरे वज्र मूढ़ अनजाने में तू ,अपना काल पुकार रहा । रुंड मुंड मय मेदिनी कर दे,नभ को अराति शीशो(दुश्मन सिरो) से पुर दे, दनुज दमन (राक्षसों का नाश) औऱ दर्प हरण कर (घमंड चूर कर)अरि चक्षु (शत्रु के नेत्रों)को शूलों से भर दे । ऐसी प्रतापी नरसिंहो की धरा को ,तू धूर्त दुत्कार रहा, अरे लम्पट,जाने अनजाने में तू, अपनी कब्र सँवार रहा । तेरी गीदड़ घुड़कियों से ,भयभीत धरा ये नही होगी, अलबत्ता इसके पौरुष से ,तेरी मिट्टी पलित होगी । शीश पर शीश चढ़ा देंगे पर ,एक इंच भी धरा न देंगे , मांद में घुसकर तेरी ग्रीवा (गर्दन)को मिट्टी में मिला देंगे । अरे निरीह छोटे तारे तू ,भास्कर (सूर्य)को ललकार रहा, अरे अशिष्ट जाने अनजाने तू अपना काल पुकार रहा । जब गरजेगी रण में तोपे, तेरा मान मर्दन होगा, तेरे घर के कण कण में ,दारुन कातर क्रंदन (रोना)होगा । गर्दभ के कंधे चढ़ तू सिंहराज को ललकार रहा, अरे प्रवंचक,जाने अनजाने तू अपना काल पुकार रहा । रणभूमि के ...